७ जुलाई , १८९६ ..भारत में चित्रपट माध्यम का आगमन हुआ ...वह लुमिए बन्धुओने मुंबई में 'वाटसन होटल 'में किए हुए उनके छह मुकपटओ के प्रदर्शन से ! उससे पहले १८९५ में फ्रांस में उन्होंने अपने सिनेमाटोग्राफ का प्रदर्शन किया था !
मुंबई में 'लुमिए शो ' में 'अराइवल ऑफ़ ट्रेन ', 'लीविंग दी फैक्ट्री ' जैसे उनके लघुपट देखकर विज्ञानं का यह चमत्कार देखनेवालो ने महसूस किया ! वैसे हमारे भारत में १८९४-९५ दरमियाँन 'शाम्ब्रिक खारोलिका '(मैजिक लैंटर्न ') नाम का इस सदृश चलचित्र का आभास दिलाने वाला खेल कल्याण के महादेव गोपाल पटवर्धन और उनके पुत्रो ने शुरू किया था।
फिर १८९६ में लुमीए शो से प्रेरणा लेकर, मुंबई में मूल रूप से छायाचित्रकार रहे हरिश्चन्द्र सखाराम भाटवडेकर तथा सावे दादा ने ' दी रेस्लर्स ' और 'मैन एंड मंकी ' जैसे लघुपट १८९९ में बनाये। किसी भारतीय ने चित्रपट निर्मिती करने का वह पहेला प्रयास था ! उसके बाद एफ बी थानावाला नामक इंजिनियर ने १९०० में 'स्प्लेंडिड न्यू व्यूज ऑफ़ बॉम्बे ' यह लघुपट तयार किया !
इसके बाद कोलकत्ता में 'रॉयल बॉयोस्कोप ' के हीरालाल सेन और उनके बन्धुओने कुछ बंगाली नाटक और नृत्य के दृश्य चित्रित करके फ़रवरी ,१९०१ के दरम्यान वह परदे पर दिखाए !,आगे १९०५ तक कोलकत्ता में जे ऍफ़ मदान इन्होने इस तरह की चित्रनिर्मिती शुरू की ! नाटय सृष्टी से आये हुए मदान ने 'ग्रेट बंगाल पार्टीशन मूवमेंट' जैसे लघुपट निर्माण किए। इन्हे वो 'स्वदेशी ' कहा करते थे !
इस वक्त तक 'टेन्ट सिनेमा ' अर्थात तम्बुओ में दिखाई जाने वाला चित्रपट आ चुका था !...और आम आदमियोको यह चमत्कार लग रहा था ! ऐसा कहते है की परदे पर आती वह चलचित्र इतनी हुबहू रूबरू होती थी, की परदे पर आ रही रेल देख कर डर के मारे लोग तम्बू के बाहर भागते थे !
१९११-१२ तक 'दिल्ली दरबार' इस भव्य चित्रपट के साथ कुछ इस तरह के लघुपट निर्माण होते गए,...और भारतीय प्रेक्षकोको चित्रपट माध्यम की पहचान होती गयी !...तब तक वहभी लिंक टाइटल ( दृश्योके बिच आनेवाली कथा शीर्षके ) और नाटको के बाद्यब्रुंद से संगीत के साथ दिखाई जाने वाले इन मुकापटो का लुफ्त उठाने से वाकिफ हो गए !!
मुंबई में 'लुमिए शो ' में 'अराइवल ऑफ़ ट्रेन ', 'लीविंग दी फैक्ट्री ' जैसे उनके लघुपट देखकर विज्ञानं का यह चमत्कार देखनेवालो ने महसूस किया ! वैसे हमारे भारत में १८९४-९५ दरमियाँन 'शाम्ब्रिक खारोलिका '(मैजिक लैंटर्न ') नाम का इस सदृश चलचित्र का आभास दिलाने वाला खेल कल्याण के महादेव गोपाल पटवर्धन और उनके पुत्रो ने शुरू किया था।
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हरिश्चन्द्र भाटवडेकर तथा सावे दादा |
फिर १८९६ में लुमीए शो से प्रेरणा लेकर, मुंबई में मूल रूप से छायाचित्रकार रहे हरिश्चन्द्र सखाराम भाटवडेकर तथा सावे दादा ने ' दी रेस्लर्स ' और 'मैन एंड मंकी ' जैसे लघुपट १८९९ में बनाये। किसी भारतीय ने चित्रपट निर्मिती करने का वह पहेला प्रयास था ! उसके बाद एफ बी थानावाला नामक इंजिनियर ने १९०० में 'स्प्लेंडिड न्यू व्यूज ऑफ़ बॉम्बे ' यह लघुपट तयार किया !
इसके बाद कोलकत्ता में 'रॉयल बॉयोस्कोप ' के हीरालाल सेन और उनके बन्धुओने कुछ बंगाली नाटक और नृत्य के दृश्य चित्रित करके फ़रवरी ,१९०१ के दरम्यान वह परदे पर दिखाए !,आगे १९०५ तक कोलकत्ता में जे ऍफ़ मदान इन्होने इस तरह की चित्रनिर्मिती शुरू की ! नाटय सृष्टी से आये हुए मदान ने 'ग्रेट बंगाल पार्टीशन मूवमेंट' जैसे लघुपट निर्माण किए। इन्हे वो 'स्वदेशी ' कहा करते थे !
इस वक्त तक 'टेन्ट सिनेमा ' अर्थात तम्बुओ में दिखाई जाने वाला चित्रपट आ चुका था !...और आम आदमियोको यह चमत्कार लग रहा था ! ऐसा कहते है की परदे पर आती वह चलचित्र इतनी हुबहू रूबरू होती थी, की परदे पर आ रही रेल देख कर डर के मारे लोग तम्बू के बाहर भागते थे !
१९११-१२ तक 'दिल्ली दरबार' इस भव्य चित्रपट के साथ कुछ इस तरह के लघुपट निर्माण होते गए,...और भारतीय प्रेक्षकोको चित्रपट माध्यम की पहचान होती गयी !...तब तक वहभी लिंक टाइटल ( दृश्योके बिच आनेवाली कथा शीर्षके ) और नाटको के बाद्यब्रुंद से संगीत के साथ दिखाई जाने वाले इन मुकापटो का लुफ्त उठाने से वाकिफ हो गए !!