Monday, 22 July 2013

दादासाहेब फाळकेका 'राजा हरिश्चन्द्र' पहेला भारतीय कथा चित्रपट !

'राजा हरिश्चन्द्र' की सोच में
दादासाहेब फालके! 
घर पर बनाया 'बीज से उगता पौदे'का लघुपट सफल होने के बाद दादासाहेब फालके ने चित्रीकरण से वाकिफ होने के लिए और भी कुछ प्रयोग किये। इसमें बच्चे दोस्तोंके साथ बगीचे में खेलते है इसका चित्रण उन्होंने किया। इससे बच्चोकी  भी जिज्ञासा बढ़ी। फिर एक लघुकथा फालकेजी ने स्वयं लिख कर उनपर चित्रित की।इसका   सेटिंग, मेकअप से लेकर सन्कलन तक सब उन्होनेही किया था ... शायद यह पहली 'चिल्ड्रेन फिल्म' कही जा सकती है!तब तक कार्बाइड दिये पर देखी जा रही ऐसी चित्रफीत उन्होंने बिजलीके दिये पर प्रोजेक्टर की  सहायता से अपने स्नेहिओसहित देखी। वह चित्रपटीय आविष्कार देख कर सब आश्चर्यचकित, आनंदीत  हुए!


पहलेही चित्रपट के लिए छायाचित्रकार भी स्वदेसी!
 दादासाहेब फालके अपने स्नेही तेलंग को छायाचित्रण
 का प्रशिक्षण देते हुए !
इस सफलता से फालकेजी का
चित्रपट निर्माण का आत्मविश्वास, उत्साह और बढा...नतीजन उसके लिए लगने वाले आर्थिक सहायता का मार्ग भी सुकर हुआ। उनके चित्रनिर्मिती के बारेमे आश्वस्त होने से साहूकार से  भी
अर्थसहाय्य (कर्ज) प्राप्त हुआ!...फिर अपने पहले कथा चित्रपट का विषय उन्होंने तय किया...'राजा हरिश्चन्द्र'!

'राजा हरिश्स्चंद्र' के किरदार में दत्तोपंत दाबके तथा
रोहिदास  के किरदार में भालचंद्र फालके और
तारामती के भेस में कृष्णा सालुंके!
इसकी पटकथा फालकेजी ने स्वयं लिखी...और चित्रीकरण की जिम्मेदारी त्रंबकेश्वर के अपने स्नेही तेलंग पर, उसके बारे में प्रशिक्षण देकर सौपी...याने की छायाचित्रकार (कैमरामैन) भी स्वदेसी हुआ !


इसके बाद कलाकारोका चयन शुरू हुआ...जिसमे सर्वप्रथम (उर्दू) नाटकोमे काम करने वाले गजानन वासुदेव साने को विश्वामित्र का किरदार दिया गया ...तथा उन्होनेही लाये हुए दत्तोपंत दाबके नामक तडफदार  इसमको राजा हरिश्चन्द्र के किरदार के लिए चुन लिया!..तब सवाल खड़ा हुआ स्त्री भूमिकाका....जिसके लिए इश्तिहार दिया गया..लेकिन कुछ अच्छा प्रतिसाद नहीं मिला। तो मजबूरन एक कलावती को बुलाया गया और उसपर अभिनय के संस्कार किए गए। लेकिन  वो टिक नहीं सकी ! अंततः नाटयकला कंपनी में स्त्री पात्र निभानेवाले पांडुरंग साने को तारामती के लिए राजी किया; लेकिन आखीर में रूपवान कृष्णा सालुंके ने यह किरदार अदा किया !...और राजपुत्र रोहिदास के लिए फालकेजी ने अपने पुत्र भालचंद्र यानेकी बाबाराया को पसंद किया !..भारतीय चित्रपट का यही पहला बालकलाकार होगा !


त्रंबकेश्वर के मंदिर परिसर में चित्रित हुए दृश्य में
विश्वामित्र (गजानन साने) को मनाता 'राजा हरिश्चन्द्र' का परिवार! 
इसके बाद चित्रपट के लिए लगने वाले पेहराव,जेवरात ऐसी मेकअप सामग्री के लिए राजापुरकर, सरस्वती और बेलगावकर स्त्री संगीत आदी मंडली ने सहकार्य किया। फिर कुछ लोगोको जरुरत के अनुसार काम पर लिया गया। बाद में फालकेजी ने रहते जगह के खाली परिसर में छोटेखानी स्टूडियो खड़ा किया गया। कुल चार हजार  फुट की फिल्म चित्रित करने के सब इंतजाम पुरे हो गए। तब इनडोअर प्रसंग फालके जी के मार्गदर्शन पर छायाचित्रकार  और कलाकारोने यथायोग्य किये। इसके बाद आउटडोअर चित्रीकरण के लिए सब फालकेजी के जन्मस्थान त्रंबकेश्वर पहुंचे और बाह्यदृश्य की भव्य-दिव्यता चित्रबद्ध हो गयी!

 इस तरह सब चित्रीकरण होने के बाद उत्तरीय प्रक्रिया में भी फालकेजी का योगदान था ...याने के पटकथा से लेकर संकलन तक उनका संचार चित्रपट के सभी विभागों में था! निगेटीव-पॉजिटीव् फिल्म होने के पश्चात् उसमे संकलन, टचिंग-कलरिंग, जोड़ना तथा शीर्षके (लिंक टाइटल्स) देना आदी सबकुछ दादासाहब ने खुद किया !

                                                                          


            
'राजा हरिश्चन्द्र' चित्रपट का आखिरी बाह्यदृश्य !                              

आखिर 'राजा हरिश्चन्द्र'...भारत का पहला कथा चित्रपट तैयार हुआ !  तब उसका 'ट्रेड शो'  बम्बई के 'ओलिम्पिया थिएटर' में २१ अप्रैल, १९१३ को  आयोजित किया गया। इसमें खास मेहमान पधारे थे। सब ने चित्रपट को बहोत सराहा!..दादासाहेब फालके और उनके परिवार पर अभिनन्दन की जैसे बौशार हो गई !.और इस के जरिये भारत में सही मायने में (स्वदेसी) कथा चित्रपट का उगम हुआ!..कुछ दिनों बाद ..३ मई, १९१३ इस सुनहरे दिन सभी दर्शकोके  लिए 'राजा हरिश्चन्द्र' चित्रपट बम्बई के 'कोरोनेशन सिनेमा' में बाकायदा प्रदर्शित हुआ!..इसके बाद पुरे देस में इसे आम जनता ने देखा… और खूब सराहा !
                                                                                                            
'भारतीय चित्रपट शताब्दी' के शुभ अवसर पर इसके पितामह दादासाहेब फालके को विनम्र अभिवादन करते है!


 -मनोज कुलकर्णी




 
 

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